जय माता दी

जय माता दी

Sunday, September 14, 2014

ईश्वर से संवाद (कविता)
मैंने पूछा  भगवान से
माँ के प्यार का क्या मूल्य है,
भगवान,  एक दम स्तब्ध और हैरान,
माँ के प्यार का मूल्य पूछ रहा है,
ऐ इंसान,
तुझे पता नहीं, माँ तो इस धरती पे,
मेरा अवतार है
इसके प्यार की तो,
पूरे त्रिलोक में दरकार है
अपने हर बच्चे की ये तकदीर है,
माँ का प्यार खुशनसीबों को मिलता है,
इसका दिल दुखे तो,
भगवान का तख़्त हिलता है
माँ की  सेवा से जन्नत के दरवाज़े खुलते हैं,
माँ जिनकी ना हो,
वे संसार में रुलते हैं
माँ का प्यार कड़ी धूप में छाया है,
माँ का प्यार हर रिश्ते में खुशियाँ लाया है
माँ के बिना बच्चे बेजान हैं,
माँ से ही तो इस जग में, 
बच्चों की पहचान है, बच्चों की पहचान है!!! 

मैंने पूछा भगवान से,
पत्नी के प्यार का क्या मूल्य है,
भगवान बोले,
ये तो लक्ष्मी का रूप है,
बुद्धिमत्ता और प्रेम का स्वरुप है
पति के लिए इसका प्यार बहुमूल्य है,
इसके बिना पारिवारिक जीवन अधूरा है
पति भी कहाँ, इस रिश्ते के बिन पूरा है
हर मोड पे पति का साथ देती है वो,
दुःख और सुख दोनों बाँट लेती है वो,
सह लेती है हर कहर जो उसने उसपे ढाया,
आने नहीं देती पति पे गम का साया
चुप रह कर भी बात कर लेती है वो,
हर मुश्किल का हल देती है वो
पत्नी का इस धरती पे, 
माँ लक्ष्मी के रूप में निवास है
जो नहीं करते इनकी पूजा व सम्मान
उनसे हो जाती लक्ष्मी नाराज़ है
इसलिए सदा इनका सम्मान करो
इनसे ही परिवार में जान है
अगर पत्नी नहीं तो,
पूरा परिवार बेजान है, पूरा परिवार बेजान है!!!

मैंने पूछा भगवान से
कन्या के प्यार का क्या मूल्य है,
भगवान हँसे और फिर कहा,
कन्या  सूने बाग में फुलवारी है
उसकी अच्छी लगती सबको किलकारी है
जब ये घर आती है,
तो खुशियाँ छा जाती हैं
कन्या तो कंजक का रूप है,
उसमें माँ का दिखता स्वरुप है
कन्या अपने पिता का संबल है,
कन्या अपनी माँ की जान है,
कन्या अपने भाई की ज़िम्मेदारी है,
कन्या हर रूप में निराली है
खुशनसीब हैं वो इस जग में,
जिसने भी कन्या पाली है
कहते हैं बेटा  शादी तक बेटा होता हैं,
पर कन्या शादी के बाद भी बेटी कहलाती है
वह पास रहे या दूर अपने माता-पिता से,
एक ही परिवार का नहीं, 
दो- दो परिवारों की ज़िम्मेदारी उठाती है
जिस घर में कन्या नहीं, 
वो घर वीरान है
और जिन -जिन घर में कन्या है,
समझो, जानो और दिल से मानो, 
वे मेरा वरदान हैं, वे मेरा वरदान हैं!!
*************************
मोना पाल “वैष्णवी” 
(असि.लाइब्रेरियन पंजाब यूनिवर्सिटी)





4 comments:

  1. नमस्कार मोना जी ये आपका बडप्पन है कि आपने मेरे थोड़े से श्रम को इतना मान दिया. इसके लिए हार्द्धिक आभारी हूँ.
    आपकी रचनाएं बहुत ही अच्छी है. उनमे बनावटीपन नही है. ऐसा लगता है मानो सीधे शब्दों में बात कही जा रही जो सीधे दिल को छूती है. बेहतरीन रचनाओ और आपकी उच्चतम सफलता कि शुभमंगल कामनाये करता हूँ....

    तरुण कु. सोनी तन्वीर
    (कवी/लेखक/सम्पादक)

    www.nanhiudaan.blogspot.com

    www.globaldarshan.blogspot.com

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  2. धन्यवाद जी आपका बहुत बहुत!!! ऐसे लोग भुबहुत कम होते हैं जो दिल से किसी का भला चाहते हैं और उनमें से एक आप हैं!!! आपने मेरी काबिलियत को सराहा यही मेरे लिए हौंसले का काम करेगी !!! आपका बहुत बहुत धन्यवाद मुझे आगे रास्ता दिखाने के लिए!!!

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