एक पैगाम-दिल से...(कविता)
ऐ खुदा, मुझे मेरे दोस्तों से मिला दो
हकीकत में तो मुमकिन नहीं
ख़्वाबों में ही मुझे
उनके हाल बता दो
गर मिले आप से कहीं,
तो कहना,
उनके बिना उदास है ये दिल
उन से दूर रहकर जीना है मुश्किल
वो दिन जो हमने साथ गुज़ारे हैं
माना वही आज के सहारे हैं
पर इस दिल को कौन समझाए
जिसे रह-रह कर उनकी याद सताए
वो जो हर पल मुझे हंसाते थे
मेरे आंसुओं को भी, अपनी आँखों से बहाते थे,
मेरे बिन कहे ही, सब जान जाते थे
मेरी आँखों की भाषा पहचान जाते थे
मैं दूर रहकर ये कैसे जानूं...
कि खुश है कि उदास हैं वो...
उन्होंने तो मुझे बताना नहीं है
पर ऐ काश!!! कुछ ऐसा हो जाए
जब वो हों खुश तो मेरे चेहरे पे मुस्कान आये
और जब वो हों उदास तो मेरी
ये आँखें भी सागर छलकाएं
कुछ नहीं मांगती मैं आपसे बस इतना ही,
कि वो जहां रहे, रहे सदा खुशहाल
जितनी खुशियाँ उन्होंने मुझे दी हैं
उस से कहीं ज्यादा उन पर लुटा दूं
मेरी और उनकी धड़कन एक बना दो
ना जाने कहाँ गुम हैं मेरे दोस्त...
उन्हें मेरा पता बता दो
मुझे मेरे दोस्तों से मिला दो.....
मोना पाल “वैष्णवी”
(असि.लाइब्रेरियन पंजाब यूनिवर्सिटी)
चंडीगढ़
ईमेल- monapall.chd@gmail.com
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