आज चीख उठी हर नारी
गूंज उठा आसमान
उसकी हाहाकार से
कब मिलेगी हमें
मुक्ति
अपनों के ही अत्याचार
से..
बचपन से ही माता पिता
द्वारा
दुत्कारा जाता
बेटों की चाह में
कोख में मारा जाता..
आधुनिकता के इस युग
में भी
बेटी को वंचित रख
बेटों को दुलारा
जाता..
चीखती है आज वो
क्यों वंचित है वो
अपने अधिकारों से..
कब मिलेगी हमें मुक्ति
अपनों के ही
अत्याचारों से..
यौवन की सीढ़ी चढ़ते ही
बुरी नज़र का निशाना
बन जाती हैं..
भूख और गरीबी मिटाने
के लिए
देह व्यापार में
धकेली जाती हैं...
बेटों को आँखों का
तारा और
बेटियां धन पराया
समझी जाती हैं...
हमारे सपनों को तोड़ कर
खुद की इच्छाएं थोपी जाती हैं...
पराये घर जाकर भी हम
बेटियां
घर की लाज रखती हैं...
पर ना जाने क्यों
वहाँ हम अपनों में
पराई समझी जाती हैं..
रोज़ रोज़ तानों से
हमारी आत्मा रुलाई जाती
हैं..
फिर दहेज़ के लिए
जिन्दा जलाई जाती
हैं...
आज पूछ रही है नारी..
क्यों दूर रखा जाता
है हमको
अपनों के ही प्यार
से..
कब मिलेगी हमें मुक्ति
अपनों के इस अत्याचार
से....
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मोना पाल “वैष्णवी”
(असि.लाइब्रेरियन
पंजाब यूनिवर्सिटी)
चंडीगढ़
ईमेल- monapall.chd@gmail.com
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