शिक्षक- दिवस(कविता)
शिक्षक-दिवस हमारे भारत में हर्षोल्लास से मनाया जाता है,
इस दिन हमें हमारे गुरु व शिक्षक का महत्व बताया जाता है
माता-पिता तो बचपन से बच्चों में नवजीवन भरते हैं,
पर शिक्षक तो आजीवन ही बच्चों में मानसिक संतुलन बनाये रखते हैं,
माता-पिता का दायित्व तो घर तक सीमित होता है,
शिक्षक घर से बाहर बच्चों का दायित्व संभालते हैं,
विद्यार्थी चाहे जैसे भी हों,
उनकी शख्सियत, अपने परिश्रम से निखारते हैं,
बच्चों में आत्म- विश्वास बढ़ाते, सच्चा मार्गदर्शन दिखलाते हैं,
उन्हें नैतिकता की सीख देकर,
जीने की कला सिखाते हैं,
निरक्षरता के अँधेरे मिटाकर,
उनके जीवन में साक्षरता के उजाले लाते हैं,
शिक्षक ना हों तो बच्चों का जीवन निराधार है,
चाहे जितनी दौलत कमा लें,
शिक्षा के बिना, जीवन बेकार है,
स्वयं विधाता ने भी शिक्षकों व गुरुओं का सम्मान किया,
खुद से श्रेष्ठ बताकर उनका वेद पुराणों में गुणगान किया,
शिक्षक हमारे भारत की उन्नति के परिचायक हैं,
माता-पिता के बाद,
बच्चों के लिए वे ही सच्चे नायक हैं,
गर हमें अपने भारत को ऊँचाईंयों पर ले जाना है,
तो हमें शिक्षक-विद्यार्थी के सम्बन्ध को सुदृढ़ बनाना है,
आओ मिलकर नए भारत का निर्माण करें,
शिक्षकों का सम्मान करके,
अपना भविष्य उज्जवल बनाएं हम,
अन्धकार में डूबे बच्चों के जीवन में शिक्षा-ज्योत जगाएं हम,
ये न भूलें, शिक्षकों से ही, भारत की संसार में पहचान है,
शिक्षक ना हों तो, हम तो क्या,
ये भारत भी निष्प्राण है, ये भारत भी निष्प्राण है!!!!
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मोना पाल “वैष्णवी”
(असि.लाइब्रेरियन पंजाब यूनिवर्सिटी)
चंडीगढ़
ईमेल : monapall.chd@gmail.com
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